अपनी वाणी
Tuesday, July 8, 2008
तीन दोहे
हैं अवाक सब बोलियाँ,खुले होंठ निस्तब्ध
कवि जी पकड़ो जोर से,उड़े जा रहे शब्द।
कलम छोड़ दो मेज़ पर,कागज रख दो द्वार
सारी दुनिया जा रही,कवि जी चलो बाज़ार।
श्रोता कब के उठ गये,पाठक चले विदेश
कवि जी आओ घर चलें,रैन भई एहि देश।
-केदारनाथ सिंह
Monday, July 7, 2008
जो पुल बनायेंगे
जो पुल बनायेंगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जायेंगे।
सेनायें हो जायेंगी पार
मारे जायेंगे रावण
जयी होंगे राम;
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बंदर कहलायेंगे
-अज्ञेय
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