Tuesday, March 9, 2010

राममनोहर लोहिया

नर चाहता है कि नारी अच्छी भी हो, बुद्धिमान हो,चतुर हो,तेज हो,और उसकी हो,उसके कब्जे में हो।ये दोनों भावनायें परस्पर विरोधी हैं।अपनी किसको बना सकते हो?उस मानी में अपनी,जो हमारे कब्जे में रहे।मेज को अपनी बना सकते हो,कमरे को बना सकते हो,किसी हद तक।बिल्ली भीमुश्किल होगी।बिल्ली कुछ और है।यानी निर्जीव यासजीव भी,तो किसी ऐसे को ही बना सकते हो,जिसकी सजीवता सम्पूर्ण है,उसको अगर अपने अधीनस्थ बना देना चाहते हो तो फिर वह चपल,चतुर,सचेत,सजीव—उस अर्थ में,जीव वाले अर्थ में नहीं—जिन्दादिल जिन्दा शरीर,तेज और बुद्धिमान नहीं हो सकती।या तो औरत को बनाओ परतंत्र,तब मोह छोड़ दो औरतों को बढ़िया बनाने का।या फिर बनाओ उसको स्वतंत्र। तब वह बढ़िया होगी;इसलिये एक या दूसरी भावना को अपनाना पड़ेगा।किस भावना को आप अपनाओ,यह आप का काम है,लेकिन मैं खाली इतना कह देता हूँ कि उस कब्जे वाली,लेकिन मुर्दा चीज से तो कोई खास मतलब होता नहीं। चुलबुला कब्जा असंभव है।निर्जीव कब्जा बेमजा है।नर और नारी का स्नेहमय सम्बन्ध बराबरी की नींव पर ही हो सकता है।ऐसा सम्बन्ध कोई भी समाज अब तक नहीं जान पाया।

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