Friday, October 30, 2015


30 अक्तूबर 2015.न्यू अशोकनगर.दिल्ली


कहीं कोई आवाज नहीं
कोई हल्की-सी जुंबिश भी नहीं
इशारे ही इशारे हैं
माजी की खुशगवार यादें
चली आई हैं 
उनके जुल्फों से खुशबू समेटी हुई
बियाबाँ में रहने का हुनर दे रही हैं
तसव्वुर में खिल रही है झरनों की हँसी
उम्मीद सी लहरें मचल जा रही हैं
कोई बता दे उन्हें कि
कभी हमने भी
लहरों में घर बनाया था
आज भी ख्वाबों में वह घर
हकीकत है।

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