Wednesday, October 21, 2015

लहक में योगेन्द्र का कविता क्या है पर आलेख





'कविता क्या है' निबंध लिखना स्वयं आचार्य रामचंद्र शुक्ल के लिए एक चुनौती थी।उन्हे इस निबंध को तीन बार लिखना पड़ा।1909,1922 और 1930 में।हिन्दी के विद्यार्थियों को यह निबंध पढ़ना पड़ता है।शिक्षकों को भी पढ़ाना पड़ता है।जब हिन्दी में निबंध की विधा अभी अपने शैशव की सीमा-रेखा पार कर रही थी,उसी समय आचार्य शुक्ल का यह गंभीर निबंध प्रकाशित हुआ।हिन्दी में साहित्यिक अवधारणाएं या तो संस्कृत साहित्य से या अँग्रेजी के माध्यम से पश्चिम से आ रही थी।शुक्ल जी उन विचारों को अपने अनुभवों और पर्यवेक्षणों के आधार पर अपने समय के अनुरूप देशी रूप दे रहे थे।
प्रकृति और मनुष्य के बीच आदर,भय और प्रेम का रिश्ता रहा है।रूप और अनुभव या भाव के बीच भी द्वंद्वात्मक संबंध हैं।कविता में ये सभी चुनौती की तरह पेश आते हैं।हिन्दी के सुधी आलोचक आचार्य शुक्ल के इस निबंध को विश्लेषित-संश्लेषित करने का दायित्व निभाने का प्रयास किया है।
लहक पत्रिका के अगस्त-सितंबर अंक में डॉ.योगेन्द्र का इसी विषय पर एक आलोचनात्मक आलेख प्रकाशित हुआ है।लेखक ने इस कठिन विषय पर सहज-सरल शैली में विचार किया है।इसमें उसके लंबे सामाजिक जीवन के अनुभव भी शामिल हैं।
योगेन्द्र के लेखन में कुछ सुखद बदलाव दिख रहे हैं।बहुत धैर्य से वे अपनी बातों को रखते हैं,थोपते नहीं हैं।अपने पाठकों को सोचने का अवकाश देना लेखन का लोकतांत्रिक तरीका है।लेखक का पूरा मिजाज इस लेख में लोकतांत्रिक है।इसके लिए लेखक को बधाई।
यदि आज की कविताओं को भी इस आलेख का हिस्सा बनाया जा सकता,तो और बेहतर होता,क्योंकि सभ्यता का आवरण और मोटा हुआ है।हम तो पाठक हैं,लेखकों से हमारी अपेक्षाएं भी रहेंगी।फिर से लेखक को धन्यवाद।

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